Prerak Prasang Mahabhar me eklavya Or Guru Dronacharya

प्रेरक कहानी: गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य

महाभारत का एक प्रसिद्ध प्रसंग है एकलव्य का, जो हमें समर्पण, गुरु-भक्ति और मेहनत के महत्व का पाठ सिखाता है।

एकलव्य एक निषाद राजकुमार था, जो धनुर्विद्या में निपुण होना चाहता था। वह गुरु द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे शिक्षा देने का अनुरोध किया। लेकिन द्रोणाचार्य ने उसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वह केवल राजकुमारों को ही शिक्षा देंगे। निराश होकर एकलव्य वहां से चला गया, पर उसने हार नहीं मानी।

एकलव्य ने जंगल में गुरु द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उसे अपना गुरु मानकर खुद से ही धनुर्विद्या का अभ्यास करना शुरू कर दिया। उसने अनगिनत अभ्यास और कड़ी मेहनत से धनुर्विद्या में महारत हासिल कर ली। एक दिन जब गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों के साथ उस जंगल से गुजरे, तो उन्होंने एकलव्य को धनुष-बाण का अभ्यास करते देखा और उसकी कला पर अचंभित हो गए।



द्रोणाचार्य ने एकलव्य से पूछा, “तुम्हारा गुरु कौन है?” एकलव्य ने विनम्रता से उनकी मूर्ति की ओर इशारा कर कहा, “गुरुदेव, आप ही मेरे गुरु हैं।” द्रोणाचार्य ने उसे उसका ‘गुरु-दक्षिणा’ मांगने के लिए कहा। एकलव्य ने बिना झिझक अपने अंगूठे को काटकर द्रोणाचार्य को भेंट कर दिया।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे समर्पण और कड़ी मेहनत से हर लक्ष्य को पाया जा सकता है। एकलव्य की गुरु-भक्ति और उसकी लगन आज भी हमें प्रेरणा देती है कि अगर मन में दृढ़ निश्चय हो, तो कोई भी कठिनाई रास्ते में नहीं आ सकती।


आज का प्रेरक प्रसंग  लालच बुरी बला है



एक बार एक बुढ्ढा आदमी तीन गठरी उठा कर पहाड़ की चोटी की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में उसके पास से एक हष्ट – पुष्ट नौजवान निकाला। बुढ्ढे आदमी ने उसे आवाज लगाई कि बेटा क्या तुम मेरी एक गठरी अगली पहाड़ी तक उठा सकते हो ? मैं उसके बदले इसमें रखी हुई पांच तांबे के सिक्के तुमको दूंगा। लड़का इसके लिए सहमत हो गया।

निश्चित स्थान पर पहुँचने के बाद लड़का उस बुढ्ढे आदमी का इंतज़ार करने लगा और बुढ्ढे आदमी ने उसे पांच सिक्के दे दिए। बुढ्ढे आदमी ने अब उस नौजवान को एक और प्रस्ताव दिया कि अगर तुम अगली पहाड़ी तक मेरी एक और गठरी उठा लो तो मैं उसमें रखी चांदी के पांच सिक्के और पांच पहली गठरी में रखे तांबे के पांच सिक्के तुमको और दूंगा।

नौजवान ने सहर्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पहाड़ी पर निर्धारित स्थान पर पहुँच कर इंतजार करने लगा। बुढ्ढे आदमी को पहुँचते-पहुँचते बहुत समय लग गया।

जैसे निश्चित हुआ था उस हिसाब से बुजुर्ग ने सिक्के नौजवान को दे दिये। आगे का रास्ता और भी कठिन था। बुजुर्ग व्यक्ति बोला कि आगे पहाड़ी और भी दुर्गम है। अगर तुम मेरी तीसरी सोने के मोहरों की गठरी भी उठा लो तो मैं तुमको उसके बदले पांच तांबे की मोहरे, पांच चांदी की मोहरे और पांच सोने की मोहरे दूंगा। नौजवान ने खुशी-खुशी हामी भर दी।

निर्धारित पहाड़ी पर पहुँचने से पहले नौजवान के मन में लालच आ गया कि क्यों ना मैं तीनों गठरी लेकर भाग जाऊँ। गठरियों का मालिक तो कितना बुजुर्ग है। वह आसानी से मेरे तक नहीं पहुंच पाएगा। अपने मन में आए लालच की वजह से उसने रास्ता बदल लिया।

कुछ आगे जाकर नौजवान के मन में सोने के सिक्के देखने की जिज्ञासा हुई। उसने जब गठरी खोली तो उसे देख कर दंग रह गया क्योंकि सारे सिक्के नकली थे।

उस गठरी में एक पत्र निकला। उसमें लिखा था कि जिस बुजुर्ग व्यक्ति की तुमने गठरी चोरी की है, वह वहाँ का राजा है।

राजा जी भेष बदल कर अपने कोषागार के लिए ईमानदार सैनिकों का चयन कर रहे हैं।

अगर तुम्हारे मन में लालच ना आता तो सैनिक के रूप में आज तुम्हारी भर्ती पक्की थी। जिसके बदले तुमको रहने को घर और अच्छा वेतन मिलता। लेकिन अब तुमको कारावास होगा क्योंकि तुम राजा जी का सामान चोरी करके भागे हो। यह मत सोचना कि तुम बच जाओगे क्योंकि सैनिक लगातार तुम पर नज़र रख रहे हैं।

अब नौजवान अपना माथा पकड़ कर बैठ गया। कुछ ही समय में राजा के सैनिकों ने आकर उसे पकड़ लिया।

उसके लालच के कारण उसका भविष्य जो उज्जवल हो सकता था, वह अंधकारमय हो चुका था। इसलिए कहते हैं लालच बुरी बला है..!!

*शिक्षा:-*
ज्यादा पाने की लालसा के कारण व्यक्ति लालच में आ जाता है और उसे जो बेहतरीन मिला होता है उसे भी वह खो देता है।

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