मूक बधिर स्कूल का मामला,

इशारों की भाषा में मूक बधिर बच्चे बोले-

‘दो-तीन रोटी से भरना पड़ता है पेट’, स्कूल प्रशासन का दावा- ‘भरपेट मिलता है भोजन’*

इन इशारों में दम है तो फिर बच्चों को मिल रही खुराक कम है

 मूक बधिर स्कूल का मामला, व्यवस्था पर उठ रहे सवाल

भोजन के सवाल पर दो-तीन अंगुली उठाकर बताई रोटी की संख्या

बांसवाड़ा.

शहर के मूक बधिर विद्यालय के बच्चों ने शुक्रवार को बातचीत के दौरान इशारों की अपनी भाषा में जो कुछ समझाया- बताया वह जानने के बाद किसी का भी दिल रोयेगा ही। भगवान ने तो उनके साथ अन्याय किया ही लेकिन अब वे इंसान के अन्याय के भी शिकार हो रहे हैं फिर वे किसके दर पर अपनी बात रखेंगे। बच्चों से उन्हें मिलने वाले भोजन को लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने इशारों की अपनी भाषा में बातचीत में दो से तीन अंगुलिया दिखाई यानी दो से तीन चपाती। यदि यह सही है तो फिर चिंताजनक ही है। दरअसल मूक बधिर विद्यालय के बच्चों को समुचित भोजन न मिलने की शिकायत की पड़ताल करने पत्रिका रिपोर्टर स्कूल पहुंचे और बच्चों से जाना। जिस पर विद्यार्थियों ने अपनी सांकेतिक भाषा में भोजन के सवाल पर दो से तीन अंगुलियां उठाई। इसका मतलब यह था कि उन्हें खाने को दो से तीन चपाती ही दी जा रही हैं। दरअसल 50 मूक बधिर बच्चे स्कूल के ही हॉस्टल में रहते है। इन बच्चों को दो समय का भोजन और सुबह का नाश्ता देने का प्रावधान है, लेकिन खाद्य सामग्री का पूरा इस्तेमाल नहीं होने की शिकायत है। हालांकि स्कूल प्रशासन का दावा है कि बच्चों को भरपेट भोजन मिलता है।

*वार्डन कभी अवकाश पर, कभी ड्यूटी पर तो कभी मेडिकल पर*

जहां तक हॉस्टल की बात है तो यहां पर तृतीय श्रेणी शिक्षिका को वार्डन की जिम्मेदारी दी हुई है। लेकिन वार्डन कभी अवकाश पर होती है तो कभी ड्यूटी पर, कभी मेडिकल पर रहती है। वार्डन की गैरमौजूदगी में जिम्मेदारी दूसरे लोग संभालते हैं भोजन के मसले पर बातचीत में एक शिक्षक ने तो यहां तक कह दिया कि बच्चों को सुबह नाश्ता, फिर पोषाहार और बाद में भोजन दिया जाता है, इस कारण वह दो ही रोटी खा पाते है।

फोटो से लगाए अंदाजा…क्या यें 50 बच्चों का भोजन है…

इस फोटो को देखें…ये फोटो चार सितंबर का है। फोटों में नजर आ रही रोटियां और कूकर में दाल। महज दो ही आइटम बच्चों के लिए बने हुए है, लेकिन क्या इतना ही खाना 50 बच्चों के लिए पर्याप्त हो सकता है। रोटियां भी गिन कर बनाई जाती है। सामान्य रूप से पांच साल के बच्चे को भी एक समय में दो रोटी चाहिए होती है, बात 10 साल या इससे अधिक आयु के बच्चे को तो कम से कम चार से पांच रोटी की आवश्यकता होती है।

इनका कहना है

पहले व्यवस्थाएं गड़बड़ रही होगी, लेकिन मेरे आने के बाद व्यवस्थाएं सुधारी गई हंै। अभी बच्चों को भोजन भी व्यवस्थित मिल रहा है और न ही कोई शिकायत है। सुरक्षा के लिए भी सीसीटीवी कैमरें लगाए है जो ऑनलाइन है। वार्डन अभी मेडिकल अवकाश पर है।
कुलदीप शुक्ल, प्रधानाचार्य मूूक बधिर स्कूल लोधा।

वार्डन को जिम्मेदारी से मुक्त करने के लिए प्रधानाचार्य को निर्देश दिए हंै। इस संबंध में पत्र व्यवहार किया है। एक बार पद से मुक्त हो जाए तो बाद विज्ञप्ति निकाल कर भर्ती की जाएगी।
एंजेलिका पलात, सीडीईओ

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